Monday 15 August 2011

MP STATE RTI DECISION

मध्य प्रदेष राज्य सूचना आयोग
अपील प्रकरण क्रमांक ए-1646/ैप्ब्/15-20/भोपाल/2009
अपील प्रकरण क्रमांक ए-1608 / ैप्ब्/18-10/भोपाल/2009
पीठासीन - पùपाणि तिवारी, मुख्य सूचना आयुक्त
अपील प्रकरण क्रमांक ए-1646/ैप्ब्/15-20/भोपाल/2009

    श्री चौधरी राकेश सिंह                         अपीलार्थी
    बी-7, 74 बंगले,  भोपाल
                        विरूद्ध   

1.    लोकसूचना अधिकारी
        मध्य प्रदेश शासन,                   
        सामान्य प्रशासन विभाग                                    मंत्रालय, वल्लभ भवन भोपाल   
             
2.       अपीलीय अधिकारी   
        मध्य प्रदेश शासन,                   
    सामान्य प्रशासन विभाग                                मंत्रालय, वल्लभ भवन भोपाल

                        एवं
                       तृतीय पक्ष

3.    श्री आर. सी. साहनी       
4    श्रीमती सुधा चौधरी       
5.    श्री आलोक श्रीवास्तव       
6    श्री ए. पी. श्रीवास्तव       
7    श्रीमती अलका उपाध्याय       
8    श्री सुदेश कुमार       
9    श्रीमती टीनू जोशी       
10    श्री इन्द्रनील शंकर दाणी       
11    श्री राघव चन्द्रा       
12    श्री प्रशान्त मेहता       
13.    श्रीमती रजनी उइके       

                          1
14    श्री राधेश्याम जुलानिया       
15    श्री संजय बंदोपाध्याय       
16    श्री डी. डी. अग्रवाल       
17    श्री एस. एन. शर्मा       
18    श्री आशीष उपाध्याय       
19    श्री एम. के. राय       
20    श्रीमती आभा अस्थाना       
21    श्री अशोक दास       
22    श्री पी. डी. मीणा       
23    श्रीमती स्नेहलता श्रीवास्तव       
24    श्री सेवाराम       
25    श्री एम. एम. उपाध्याय       
26    श्री अनिल श्रीवास्तव       
27    श्री एस. पी. एस. परिहार       
28    श्री टी. धर्माराव       
29    श्री अनिरुद्ध मुकर्जी        
30    श्री बी. आर. नायडू        
31    श्री मनोज झालानी        
32    श्री ओमेश मूँदड़ा        
33    श्री मनीष रस्तोगी        
34    श्री डी. पी. अहिरवार        
35    डॉ. ई. रमेश कुमार        
36    श्रीमती शशि कर्णावत        
37    श्रीमती जयश्री कियावत        
38    श्री एन. एस. भटनागर        
39    श्री श्याम सिंह कुमरे        
40    श्री आशीष श्रीवास्तव        
41    श्री जे. एस. माथुर        
42    श्री प्रदीप भार्गव        
43    श्री एम. एस. भिलाला        
44    श्री जी. के. श्रीवास्तव        
45    श्री एस. के. मिश्रा
46    श्री आर. के. स्वाई
47    श्रीमती विजया श्रीवास्तव
48    श्री दीपक खाण्डेकर
49    श्री विनोद चौधरी
50    श्री अरविंद जोशी
                        2

51    श्री प्रभाकर बंसोड़
52    श्री पी. जी. गिल्लौरे
53    श्रीमती रंजना चौधरी
54    श्री ओ. पी. रावत
55    श्री मो॰ सुलेमान
56    श्री एम. के. वार्ष्णेय
57    श्री राजकुमार माथुर
58    श्री व्ही. के. बाथम
59    डॉ. देवराज बिरदी
60    श्री शैलेन्द्र सिंह
61    श्री दिलीप मेहरा
62    श्री सत्यप्रकाश
63    श्री जी. पी. सिंघल
64    श्री प्रवेश शर्मा
65    श्री मनोज गोयल
66    श्री देवेन्द्र सिंघई
67    श्री इकबाल सिंह बैंस
68    श्री के. पी. सिंह
69    श्री अनुराग जैन
70    श्री संजय दुबे
71    श्री जब्बार ढॉकवाला
72    श्री मनोज श्रीवास्तव
73    श्री एस. एन. मिश्रा
74    श्रीमती सीमा शर्मा
75    श्रीमती पल्लवी जैन गोविल
76    श्रीमती राजकुमारी खन्ना
77    श्री संतोष मिश्र
78    श्री मनोहर लाल दुबे
79    श्रीमती रेणु तिवारी
80    श्री अशोक देशवाल
81    श्री एम. बी. ओझा
82    श्रीमती वीरा राणा
83    श्री निशान्त वरवड़े
84    श्री एम. ए. खान
85    श्री डी. के. तिवारी
                                         .......प्रत्यर्थीगण
                        3


अपील प्रकरण क्रमांक ए-1608/ैप्ब्/18-10/भोपाल/2009

    श्री चौधरी राकेश सिंह                         अपीलार्थी
    बी-7, 74 बंगले,  भोपाल

                        विरूद्ध   

1.    लोकसूचना अधिकारी
        मध्य प्रदेश शासन,                   
        गृह विभाग                                            मंत्रालय, वल्लभ भवन भोपाल   
             
2.    अपीलीय अधिकारी   
        मध्य प्रदेश शासन,                   
    गृह विभाग                                मंत्रालय, वल्लभ भवन भोपाल

                        एवं
                       तृतीय पक्ष                  
3.    श्री एस. के. राउत
4.    श्री यू. सी. षडंगी
5.    डॉ. विजय कुमार
6.    श्रीमती अनुराधा शंकर
7    श्री स्वर्ण सिंह
8.    श्री एम. आर. आसूदानी
9.    श्री सुरेन्द्र सिंह
10.    श्री पी. एल. पाण्डे
11.    श्री कैलाश मकवाणा
12.    श्री एच. एस. पवार
13.    श्री अनंत कुमार सिंह
14.    श्री संजय व्ही. माने
15.    श्री अन्वेष मंगलम्
16.    श्री आर. के. शुक्ला
17    श्री एच. के. सरीन
18    डॉ. आर. के. गर्ग
19    श्री विजय यादव
20      श्री आर. पी. सिंह
21.      श्री सरबजीत सिंह


22    श्री नंदन दुबे
23    श्री बी. बी. एस. ठाकुर
24    श्री के. एल. मीणा
25.    श्री वी. के. सिंह
26    श्री आर. एल. बोरना
27    श्री विजय वाते
28    श्री बी. मरिया कुमार
29.    श्री रमेश शर्मा
30.    श्री आई. एस. चौहान
31.    श्री ए. के. श्रीवास्तव
32    श्री वी. के. पँवार
33.    श्री सुखराज सिंह
34    श्री पवन श्रीवास्तव
35      श्री अशोक दोहरे
36      श्री संजीव कुमार सिंह
37     श्री राजेन्द्र कुमार मिश्रा
38     श्री एन. एल. डोंगरे
39     श्री आर. एस. कौल
                                 .............प्रत्यर्थीगण



















                      आदेष

                       ( दिनांक 15 फरवरी 2010 )

    इस आदेश व्दारा अपील संख्या ए-1646/ैप्ब्/15-20/भोपाल/2009 एवं अपील संख्या ए-1608 / ैप्ब्/18-10/भोपाल/2009 का निपटारा एक साथ किया जा रहा है क्योंकि दोनों ही प्रकरणों के तथ्य एवं विधिक प्रश्न समान   है ।

2.    मध्यप्रदेश विधान सभा के एक सम्मानीय सदस्य अपीलार्थी श्री चौधरी राकेश सिंह ने यह व्दितीय अपील लोक सूचना अधिकारियों और अपीलीय अधिकारियों के आदेशों से व्यथित होकर फाईल किया है जिसके व्दारा सूचना का अधिकार अधिनियम
                        5

2005 (संक्षेप में अधिनियम) की धारा 6 (1) के अधीन फाईल किये गये उनके आवेदन खारिज कर दिये गये ।

3.    प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी ने मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल और पुलिस मुख्यालय मध्यप्रदेश भोपाल को सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन जानकारी हेतु लोक सूचना अधिकारियों के समक्ष दिनांक 2 फरवरी 2009 को आवेदन फाईल किया था । मंत्रालय के लोक सूचना अधिकारियों से भारतीय प्रशासनिक सेवा के मंत्रालय में पदस्थ अधिकारियों के आवेदन दिनांक से तीन वर्ष पूर्व के सम्पत्ति विवरण जो उन्होने कार्यालय में प्रस्तुत किये थे, की प्रतिलिपियां प्रदाय करने का अनुरोध किया था तथा इसी प्रकार पुलिस मुख्यालय भोपाल के लोक सूचना अधिकारी को आवेदन कर आवेदन दिनांक तक मुख्यालय में पदस्थ भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के सम्पत्ति विवरण जो उन्होने पुलिस मुख्यालय में प्रस्तुत किये थे, की प्रतिलिपियां प्रदाय करने का अनुरोध किया था । चूंकि चाही गई जानकारी मंत्रालय में ही संधारित होती है इसलिये पुलिस मुख्यालय के लोक सूचना अधिकारी ने अपीलार्थी का आवेदन मध्यप्रदेश शासन गृह विभाग मंत्रालय को अन्तरित कर दिया था । गृह मंत्रालय एवं सामान्य प्रशासन मंत्रालय के लोक सूचना अधिकारियों ने तृतीय पक्ष को एवं अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् अपीलार्थी का आवेदन खारिज कर दिये । अपीलार्थी ने प्रथम अपील किया किन्तु वह असफल रहा । अतः उन्होने यह व्दितीय अपील फाईल किया है ।
4.    इस आयोग ने अधिनियम की धारा 19 (4) के अधीन उन सभी ऐसे अधिकारियों को पत्र लिखकर जवाब एवं सुनवाई का अवसर दिया था जिनकी कि सम्पत्ति का विवरण चाहा गया था । कुछ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों (श्री विनोद चौधरी, श्रीमती रंजना चौधरी, श्री एम0के0राय, श्री ओ0पी0रावत, श्री अशोक दास, श्री राघव चन्द्रा, श्री संजय दुबे, श्री जब्बार ढांकवाला, श्री प्रभाकर बन्सोड, श्री मनोज झालानी, श्री ओमेश मून्दडा, श्रीमती सीमा शर्मा, श्री अषोक देषवाल, श्रीमती सुधा चौधरी, श्री बी0आर0नायडू एवं एम0ए0खान) एवं पुलिस सेवा के अधिकारियों (श्री एस0के0राउत, श्री नन्दन दुबे, श्री व्ही0के0पवार, श्री रमेश शर्मा, श्री सुरेन्द्र सिंह, श्री  वी0के0वाते, श्री ऋषिकुमार शुक्ला, श्री विजय कुमार सिंह, श्री सुखराज सिंह, श्री बी0एम0कुमार, श्री स्वर्ण सिंह, श्री ए0के0श्रीवास्तव, डा0 विजय कुमार, श्री एच0एस0पवार,श्री यू0सी0षडंगी, श्री कैलाश मकवाना, श्री एम0आर0आसूदानी, श्री संजय वी माने, श्री बी0बी0एस0 ठाकुर, श्रीमती अनुराधा शंकर, श्री पवन कुमार श्रीवास्तव, श्री आर0एल0बोरना, श्री अनन्त कुमार सिंह, श्री अन्वेष मंगल, श्री अषोक दोहरे, श्री आर0पी0सिंह) ने अपने उत्तरों में यह लिखा है कि उनकी सम्पत्ति का विवरण अपीलार्थी को प्रदाय करने में उन्हें कोई आपत्ति नही है । श्री ओ0पी0रावत ने तो अपने उत्तर के साथ अपनी सम्पत्ति का विवरण भी संलग्न किया है ।

5.    लोक सूचना अधिकारियों एवं तृतीय पक्ष के अन्य अधिकारियों का यह प्रकथन है कि प्रश्नगत जानकारी लोक सेवकों व्दारा वैश्वासिक नातेदारी के अधीन दी गई है और इस कारण अधिनियम की धारा 8 (1) (म) के अधीन प्रदाय किये जाने से वर्जित  है । उनके अनुसार इसी प्रकार सम्पत्ति विवरण की चाही गई जानकारी सार्वजनिक होने से ऐसे अधिकारियों की निजता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा और इस कारण अधिनियम की धारा 8 (1)  (र) के अधीन यह गोपनीय जानकारी प्रदाय नही की जा सकती ।

6.    कुछ प्रत्यर्थीगण (तृतीय पक्ष) ने न तो अपना लिखित उत्तर फाईल किया और न ही सुनवाई के समय उपस्थित हुये । कुछ ने लिखित उत्तर तो फाईल किया है किन्तु सुनवाई के समय वह अनुपस्थित रहे हैं । कुछ ने (भा0पु0से0 - श्रीमती अनुराधा शंकर एवं श्री आर0एस0कोल, भा0प्र0सेवा - श्री एम0एम0उपाध्याय, श्रीमती रेणू तिवारी, श्री टी0धर्माराव, श्री संजय दुबे, श्रीमती सीमा शर्मा, श्रीमती शशि कर्णावत,एवं श्री शेलेन्द्र सिंह) लिखित उत्तर भी फाईल किया और सुनवाई के समय भी उपस्थित रहे । दोनों ही विभाग के लोक सूचना अधिकारियों ने सुनवाई के समय अपने-अपने उत्तरों के अनुसार ही तर्क किये है । अपीलार्थी श्री चौधरी राकेश सिंह की सुनवाई के समय मुख्य दलील यह थी कि जब लोकसभा एवं विधान सभा के चुनाव के प्रत्याशियों का सम्पत्ति का विवरण सार्वजनिक करने से उनकी एकान्तता का अतिक्रमण नही होता तो लोक सेवकों की एकान्तता पर अतिक्रमण कैसे हो सकता है ? क्योंकि सभी नागरिकों को सविधान के तहत एक समान मौलिक अधिकार प्राप्त  हैं ।

7.    मामले में निम्न निर्णायक प्रश्न उद्भूत होते हैं:-
क-     क्या चाही गई जानकारी वैश्वासिक नातेदारी के अधीन दी गई है और इस कारण अधिनियम की धारा 8 (1) (म) के अधीन उसे प्रदाय करने की बाध्यता नही है  ?
    ख-    क्या चाही गई जानकारी प्रदाय करने से संबंधित लोक सेवकों की             निजता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा और इस कारण अधिनियम की             धारा 8 (1) (र) के अधीन प्रदाय करने की बाध्यता नही है ?
    ग-    क्या ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित है ?
    घ-    क्या अपीलार्थी चाही गई जानकारी पाने का हकदार है ?

प्रश्न संख्या - क
8.    अधिनियम की धारा 8 (1) (म) निम्न प्रकार पठित है:-
    ‘‘  किसी व्यक्ति को उसकी वैश्वासिक नातेदारी में उपलब्ध सूचना, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी का यह समाधान नही हो जाता है कि ऐसी सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोक हित का समर्थन होता है । ‘‘
यद्यपि इस धारा में ‘‘ वैष्वासिक नातेदारी ‘‘  शब्द  का प्रयोग किया गया है किन्तु वैष्वासिक क्या है यह अधिनियम में परिभाषित नही है । ब्रिस्टल एंड वेस्ट बिल्डिंग सोसायटी विरूद्ध मौथ्यू (1998) चेप्टर - 1 में वैष्वासिक (थ्पकनबपंतल) निम्न प्रकार वर्णित किया गया है:-

श्श् । पिकनबपंतल पे ेवउमवदम ूीव ींे नदकमतजंामद जव ंबज वित ंदक वद इमींस िव िंदवजीमत पद ं चंतजपबनसंत उंजजमत पद बपतबनउेंजदबमे ूीपबी हपअम तपेम जव ं तमसंजपवदेीपच व िजतनेज ंदक बवदपिकमदबमण्श्श्

।कअंदबम स्ंू  स्ंगपबवद तीसरा संस्करण 2005 में थ्पकनबपंतल तमसंजपवदेीपच को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है:-
    श्श् ं तमसंजपवदेीपच पद ूीपबी वदम चमतेवद पे नदकमत ं कनजल जव ंबज वित जीम     इमदमपिज व िजीम वजीमत वद जीम उंजजमते ूपजीपद जीम ेबवचम व िजीम तमसंजपवदेीपच ण्ण्ण्ण्थ्पकनबपंतल तमसंजपवदेीपच नेनंससल ंतपेम पद वदम व िजीम विनत ेपजनंजपवदे ;1द्ध ूीमद वद चमतेवद चसंबमे जतनेज पद जीम ंिपजीनिस पदजमहतपजल व िंदवजीमत ए ूीव ंे ं तमेनसज हंपदे ेनचमतपवतपजल वत पदसिनमदबम वअमत जीम पितेजए ;2द्ध ूीमद वदम  चमतेवद ंेेनउमे बवदजतवस ंदक तमेचवदेपइपसपजल वअमत ंदवजीमतए ;3द्ध ूीमद वदम चमतेवद ींे ं कनजल जव ंबज वत हपअम ंकअपबम जव ंदवजीमत वद उंजजमते ंिससपदह ूपजीपद जीम ेबवचम व िजीम तमसंजपवदेीपचए वत ;4द्ध ूीमद जीमतम     ेचमबपपिब तमसंजपवदेीपच जींज ींे जतंकपजपवदंससल इममद तमबवहदप्रमक ंे पदअवसअपदह पिकनबपंतल कनजपमेए ंे ूपजी ं संूलमत ंदक ं बसपमदजए वत ं ेजवबाइतवामत ंदक बनेजवउमतण्श्श्

इस प्रकार वैष्वासिक नातेदारी के निम्न तत्व  हैं:-
क.    यह दो व्यक्तियों - उदाहरण के लिये । और ठ के बीच ट्रस्ट की एक नातेदारी होती है ।
    ख.     ठ को । पूर्ण विष्वास में जानकारी देता है ।

ग.    । यह जानकारी बी को इस आषय से देता है कि ठ, उसका उपयोग ।, के लाभ के लिये ही करेगा । उदाहरणार्थ:- डॉक्टर और मरीज के बीच कीे नातेदारी एक वैष्वासिक नातेदारी है । मरीज डॉक्टर को सब बातें इस विष्वास से बता देता है कि उनका उपयोग डॉक्टर मरीज के लाभ के लिये करेगा । पक्षकार अपने वकील को पूरी जानकारी इस आषय से देता है कि वकील उसका उपयोग पक्षकार के लाभ के लिये करेगा ।
9.    हमारे समक्ष विचाराधीन मामले में उपरोक्त तीनों तत्वों और विषेषतः तीसरे तत्व का पूर्णतया अभाव है । ऐसी स्थिति में लोक सेवकों व्दारा अपने नियोक्ताओं को वैष्वासिक नातेदारी में जानकारी देने का प्रष्न उत्पन्न नही होता । वस्तुतः संबंधित लोक सेवकों ने इस संबंध के भारत शासन के नियम के अधीन जारी निर्देषों के अनुपालन में अर्थात विधि व्दारा अधिरोपित अपने कर्तव्य निर्वहन में राज्य शासन को अपनी सम्पत्ति का विवरण दिया है । स्पष्ट है कि सम्पत्ति विवरण संबंधी ऐसी जानकारी को वैष्वासिक नातेदारी के अधीन दी गई जानकारी नही माना जा सकता । (अवलम्बित न्याय दृष्टांत स्च्। छव्ण्501/2009 सेकेट्री जनरल सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया विरूद्ध सुभाष चन्द्र अग्रवाल,  पूर्ण पीठ निर्णय दिनांक 12.01.2010)

10.    अतः उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में प्रत्यर्थीगण की यह दलील कि राज्य शासन को उन्होने अपनी सम्पत्ति का विवरण वैष्वासिक नातेदारी के अधीन दिया था सारहीन है और उसे मान्य नही किया जा सकता ।

प्रश्न संख्या - ख
11.    प्रत्यर्थीगण की दूसरी दलील यह है कि सम्पत्ति विवरण संबंधी जानकारी अधिनियम की धारा 8 (1) (र) के अधीन वैयक्तिक जानकारी है और इसके प्रकटन से उनकी निजता पर अनावष्यक अतिक्रमण होगा । सुसंगत धारा 8 (1) (र) निम्न प्रकार पठित है:-
‘‘ सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसका प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप या हित से संबंध नही रखता है या जिससे व्यक्ति की एकांतता पर अनावष्यक अतिक्रमण होगा, जब तक कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अध्ािकारी या अपील प्राधिकारी का यह समाधान नही हो जाता है कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित है: ‘‘

12.    इस बात पर कोई विवाद नही है कि नागरिकों के लिये सूचना का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अधीन उदभूत एक मौलिक अधिकार है । इसी प्रकार निजता पर अनावष्यक अतिक्रमण के विरूद्ध भी संविधान के अनुच्छेद 21 के  अधीन उन्हें मौलिक अधिकार प्राप्त हैं । ऐसी स्थिति में प्रकरण के तथ्यों और परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में यह देखना होगा कि क्या अपीलार्थी व्दारा चाही गई जानकारी के प्रकटन से ऐसे लोक सेवकों की निजता पर अनावष्यक अतिक्रमण तो नही होता ? यूनियन आफ इण्डिया विरूद्ध एसोसियेषन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ए0आई0आर 2002 सुप्रीम कोर्ट पेज 2112 तथा पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज वि0 यूनियन आफ इन्डिया ।ण्प्ण्त्ण् 2003 सुप्रीम कोर्ट 2363 के विनिश्चयों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विधायकों और सांसदों के निर्वाचन के प्रत्याषियों के संबंध में यह अभिनिर्धारित किया है कि लोकतंत्र में भ्रष्टाचार के कैंसर के निदान के लिये खुलापन होना आवष्यक है जिससे प्रकाष की कुछ किरणे भ्रष्टाचार के कैंसर से निजात पाने के लिये मिल सके । इन्ही मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा है कि इसलिये सांसदों और विधायकों के प्रत्याषी जो सत्ता और पद पा सकते हैं उनके ऐसे पद पर पहुंचने के पहले  उनकी सम्पत्ति सार्वजनिक होनी चाहिये ।

13.    माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त विनिष्चयों के प्रकाष में विचार करने पर सांसद एवं विधायक पद के प्रत्याषियों के लिये एक मापदण्ड और अन्य लोक सेवकों के लिये दूसरा मापदण्ड कैसे हो सकता है ? संविधान व्दारा प्रदत्त अधिकार देष के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं । यदि ऐसे प्रत्याषियों की सम्पत्ति सार्वजनिक होने से उनकी निजता पर अनावष्यक अतिक्रमण नही होता तो लोक सेवकों की निजता पर अतिक्रमण की बात कैसे मानी जा सकती है ।  जो लोग अभी पद और सत्ता में नही है उनके लिये यदि पद और सत्ता में पहुंचने के पहले ही सम्पत्ति का सार्वजनिक किया जाना विधि सम्मत है तो भ्रष्टाचार के विरूद्ध लडाई के एक प्रयास में जो लोग पहले से ही पदासीन और सत्तासीन है उनकी सम्पत्ति का विवरण सार्वजनिक होना आवष्यक है और ऐसा होने से उनकी निजता पर अनावष्यक अतिक्रमण का प्रष्न उत्पन्न नही होता ।  विद्यमान परिस्थितियों में यह भी सुस्पष्ट है कि चाही गई जानकारी का प्रकटन लोक क्रियाकलाप और लोक हित से निष्चित रूप से संबंध रखता है । अतः यह दलील की अपीलार्थी व्दारा चाही गई जानकारी के प्रकटन से संबंधित लोक सेवकों की निजता पर अनावष्यक अतिक्रमण होगा, अमान्य की जाती है ।

प्रश्न संख्या - ग
14        एक अन्य तथ्य जिसकी चर्चा किया जाना समीचीन होगा  यह है कि क्या चाही गई सूचना का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित होगा ? इस बात पर कोई विवाद नही है और न ही विवाद किया जा सकता है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक क्रान्तिकारी कानून  है जिसकी उद्देषिका (च्तमंउइसम) स्पष्ट  तौर पर कहती है कि हमारे संविधान ने लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की है जो कि ऐसी सूचना में पारदर्षिता की अपेक्षा करता है जो उसके कार्यकरण तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिये अनिवार्य  है । अविवादित रूप से पद और सत्ता में आसीन बडी संख्या में लोगों के विरूद्ध आये दिन भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगते रहते हैं तथा इस दषा से देष के नागरिकों और समाज का चिन्तित होना स्वाभाविक है । इस परिस्थिति में देष के नागरिकों को यह जानने का हक है कि पद या सत्ता पर आसीन होने के समय और उसके बाद ऐसे लोगों व्दारा अर्जित आय क्या है । इस परिप्रेक्ष्य में हम जब विचार करते हैं तो हमारा यह समाधान हो जाता है कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित है ।

15.    वस्तुतः इस विषयवस्तु की गम्भीरता और व्यापक लोकहित को देखते हुये शासन एवं सभी संबंधित लोक प्राधिकारियों से यह अपेक्षित है कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी लोक सेवक अनिवार्य और आवश्यक रूप से प्रतिवर्ष अपनी सम्पत्ति का विवरण दें और किसी नागरिक के आवेदन के बिना भी ऐसी जानकारी सार्वजनिक की जावे और वेबसाईट पर डाली जाये ताकि नागरिकों की अपने लोक सेवकों पर सतत् निगरानी रह सके ।

   
प्रष्न संख्या - घ

16.    परिणामतः उपरोक्त विवेचन के प्रकाश में यह अपील सफल होती है और मंजूर की जाती है । अपीलगत आदेश अपास्त किये जाते हैं । मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय वल्लभ भवन एवं मध्यप्रदेश शासन गृह विभाग, मंत्रालय वल्लभ भवन के लोक सूचना अधिकारियों को यह निर्देशित किया जाता है कि वह अपीलार्थी दारा चाही गई जानकारी उन्हें 15 दिवस के अन्दर निःषुल्क प्रदाय करें और पालन प्रतिवेदन एक़ माह में इस आयोग को प्रेषित करें ।

(पùपाणि तिवारी)
 मुख्य सूचना आयुक्त